नाडी- शोधन:
मानव शरीर से सम्बंधित ७२००० सूक्ष्म ऊर्जा नाडियाँ मानी गई हैं. इनमे से इडा, पिंगला और सुषुम्ना तीन मुख्य नाडियाँ हैं जिन्हें शोधन करने से व्यक्ति की चेतना का स्तर ऊपर उठता है. ये नाडियाँ मूलाधार से रीढ़ की संरचना के साथ ऊपर उठकर भौहों के मध्य थोड़ा ऊपर आज्ञा चक्र में एक दूसरे से मिलती हैं. इन नाड़ियों में ऊर्जा के प्रवाह को बढाने और निरंतरता लाने से चेतना का स्तर ऊपर उठता है. उर्ध्वगामी चेतना से व्यक्ति के विचारों, व्यवहार और निर्णय में बड़ा परिवर्तन आता है. व्यक्ति विकास के पथ पर तेजी से अग्रसर होने लगता है.
इडा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों का शोधन योग साधना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इन नाड़ियों का शोधन करने से शरीर और मन का संतुलन, शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। यहाँ इन नाड़ियों का शोधन करने की कुछ महत्वपूर्ण विधियाँ दी जा रही हैं:
1. नाड़ी शोधन प्राणायाम:
नाड़ी शोधन प्राणायाम (अनुलोम-विलोम) एक बहुत ही प्रभावी तकनीक है जो इडा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों को शुद्ध करने में मदद करती है।
विधि:
1. आरामदायक स्थिति में बैठ जाएं, रीढ़ की हड्डी सीधी होनी चाहिए।
2. दाहिने हाथ के अंगूठे से दाहिनी नासिका बंद करें और बायीं नासिका से गहरी सांस लें।
3. अब दाहिने हाथ की अनामिका से बायीं नासिका बंद करें और दाहिनी नासिका से सांस छोड़ें।
4. दाहिनी नासिका से सांस लें और बायीं नासिका से सांस छोड़ें।
5. इस प्रक्रिया को 5-10 मिनट तक दोहराएं।
2. भस्त्रिका प्राणायाम:
भस्त्रिका प्राणायाम नाड़ियों को शुद्ध करने और ऊर्जा प्रवाह को बढ़ाने का एक और प्रभावी तरीका है।
विधि:
1. आरामदायक स्थिति में बैठें, रीढ़ की हड्डी सीधी रखें।
2. नाक के माध्यम से तेजी से गहरी सांस लें और तेजी से सांस छोड़ें।
3. यह प्रक्रिया तीव्रता से और लयबद्ध तरीके से की जानी चाहिए।
4. इसे 1-2 मिनट तक करें, धीरे-धीरे समय बढ़ाएं।
3. कपालभाति प्राणायाम:
कपालभाति प्राणायाम भी नाड़ियों को शुद्ध करने के लिए उपयोगी है।
विधि:
1. आरामदायक स्थिति में बैठें, रीढ़ की हड्डी सीधी रखें।
2. नाक के माध्यम से गहरी सांस लें और पेट को अंदर खींचते हुए तेजी से सांस छोड़ें।
3. सांस छोड़ने पर पूरा ध्यान केंद्रित करें, सांस लेना स्वाभाविक हो।
4. इसे 1-5 मिनट तक करें, धीरे-धीरे समय बढ़ाएं।
4. त्राटक:
त्राटक ध्यान विधि है जिसमें एक निश्चित बिंदु या वस्तु (जैसे मोमबत्ती की लौ) को ध्यानपूर्वक देखा जाता है।
विधि:
1. आरामदायक स्थिति में बैठें और मोमबत्ती की लौ को अपनी आँखों के स्तर पर रखें।
2. बिना पलक झपकाए लौ को ध्यानपूर्वक देखें।
3. आँसू आने पर आँखें बंद कर लें और लौ की छवि को ध्यान में रखें।
4. इसे 5-10 मिनट तक करें।
5. बंध और मुद्राएँ:
बंध और मुद्राएँ नाड़ी शोधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
मूलबंध:
1. आरामदायक स्थिति में बैठें।
2. गहरी सांस लें और मलाशय (anus) को अंदर खींचें।
3. इसे 10-15 सेकंड तक रोकें और फिर छोड़ें।
जालंधर बंध:
1. आरामदायक स्थिति में बैठें।
2. गहरी सांस लें और ठोड़ी को छाती की ओर झुकाएं।
3. इसे 10-15 सेकंड तक रोकें और फिर सामान्य स्थिति में आ जाएं।
6. ध्यान
ध्यान के माध्यम से नाड़ी शोधन की जा सकती है।
विधि:
1. आरामदायक स्थिति में बैठें।
2. अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करें और धीरे-धीरे सांस लें और छोड़ें।
3. इडा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों के बीच संतुलन बनाने की कल्पना करें।
4. इसे 10-20 मिनट तक करें।
7. मंत्र साधना
मंत्रों का जाप भी नाड़ी शोधन में सहायक हो सकता है। विशेषकर “ओम” का जाप नाड़ी शोधन में लाभकारी होता है।
विधि:
1. आरामदायक स्थिति में बैठें।
2. आँखें बंद करें और “ओम” मंत्र का उच्चारण करें।
3. ध्यान दें कि मंत्र की ध्वनि नाड़ियों में प्रवाहित हो रही है।
4. इसे 5-10 मिनट तक करें।
इन विधियों को नियमित रूप से अभ्यास करने से इडा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों का शोधन किया जा सकता है, जिससे आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। अभ्यास में धैर्य और स्थिरता बनाए रखें. कृपया योग शिक्षक या विशेषज्ञ से परामर्श लें।